महागठबंधन


झूठ, बेईमानी, अनाचार आदि ने
साक्षर युग की ज़रूरतों को समझते हुए
किया महागठबंधन.
इन्होंने सारे सकारात्मक शब्दों की बुनावट को समझा
और तैयार किया सबका खूबसूरत चोला।
इन चोलों को पहन इन्होंने
फिर से शुरू की राजनीति।
नए चोलों ने क्या खूब कमाल किया
रोज ही नया धमाल करते
हैरान होने लगे सभी सकरात्मक शब्द,
उनकी पहचान का संकट हो गया
जितना ही वे अपनी पैरोकारी करते
उतना ही संकट गहरा हो जाता।
उनकी हालत दयनीय हो गयी जब
उनपर आरोप लगाया गया संगीन
कि उन्होंने महज सकरात्मकता का
चोला ओढ़ा हुआ है।
उन शब्दों को धमकाया भी गया कि
जल्द ही वे किसी पुरानी किताबों या
पीले दस्तावेजों में दफ़न हो जाएँ क्योंकि
देश अब जाग पड़ा है, नकली चोलों के दिन लद गए हैं।
सकारात्मक शब्दों की बैठक तो हुई,
पर कोई एक राय ना बन सकी,
किसी ने धीरज की रणनीति अपनाने को कहा,
किसी ने जनता की सनातन उदात्त चेतना पर विश्वास रखने को कहा
साहस शब्द ने संघर्ष पर उद्यत होने को कहा
आचरण की शुद्धता पर भी ध्यान गया जब किसी ने
नकारात्मक शब्दों के चोलों को बुनने की बात की।
बैठक नाकाम रही
सभी सकारात्मक शब्द अकेले पड़ गए और
देर-सबेर वे अलग-अलग शब्दकोशों में जाकर सुस्ताने लगे।
पर
नयी सरकार ने नए ज़माने के लोकतंत्र और नयी चेतना के अनुरूप
सभी शब्दकोशों के सभी पन्नों की नीचे की मार्जिन पर
यह डिस्क्लेमर लगाना राष्ट्रहित में अनिवार्य कर दिया था :
‘सावधान रहें, सचेत रहें, सकरात्मक रहें, शब्दार्थ चोले बदल रहें।’

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