लेकॉनिक टिप्पणी का अभियोग ........ऐसा है क्या....? प्रेरणा : आदरणीय ज्ञानदत्त जी...
लेकॉनिक टिप्पणी का अभियोग ........ऐसा है क्या....? प्रेरणा : आदरणीय ज्ञानदत्त जी. .. भूमिका : आजकल व्यस्त हूँ, या यूँ कहें कुछ ऐसा ही रहना चाहता हूँ. मै जिस मध्यम स्तरीय पारिवारिक विन्यास से हूँ वहां अभी कुछ समय पहले तक सेलफोन भी विलासिता का प्रतीक माना जाता रहा है तो लैपटॉप और उसमे भी इन्टरनेट कनेक्शन...शायद सरासर विलासिता. अभी मेरा कैरियर मुझसे और ढेर सारा पसीना मांग रहा है और चाहिए उसे स्पर्श integrated and comprehensive time management का. तो समय मेरे लिए केवल कीमती ही नहीं है वरन उसका असहनीय दबाव भी रहता है लगातार. लिखना अच्छा लगता है तो ब्लागरी पर नज़र गयी. अचानक से ब्लोगिंग हाथ लगी और हम आ गए धीरे-धीरे रौ में. पर एक अपराध बोध लगातार चलता रहता है मन में कि शायद मेरी दिशा ठीक नहीं है. शायद मै समय गवां रहा हूँ या ब्लागरी तो कभी की जा सकती है. या ऐसा भी क्या है ..मिलता क्या है..कुछ/न्यूनाधिक टिप्पणियां...!!! अपराध-बोध का कम होते जाना : शुरू में बस लिखता गया. ब्लाग-एग्रीगेटर्स के बारे में कुछ पता नहीं था. मुझे लगता था कि एक डायरी सा है जो आनलाईन है, any time ea