दीया, तुम जलना..

दीवाली पर अभी तुरत लिखी एक छोटी कविता.
जो जीवन देकर उजाला देता है, उससे की मैंने विनती....




दीया, तुम जलना..  
अंतरतम का मालिन्य मिटाना 
विद्युत-स्फूर्त ले आना.  
दीया, तुम जलना.  


जलना तुम मंदिर-मंदिर 
हर गांव नगर में जलना 
ऊंच-नीच का भेद ना करना 
हर चौखट तुम जलना  




बूढ़ी आँखों में तुम जलना 
उलझी रातों में तुम जलना 
अवसाद मिटाना हर चहरे का 
हर आँगन तुम खिलना  
दिया तुम जलना  

चित्र साभार: गूगल


#श्रीश पाठक प्रखर


टिप्पणियाँ

Mishra Pankaj ने कहा…
जलना तुम मंदिर-मंदिर
हर गांव नगर में जलना
ऊंच-नीच का भेद ना करना
हर चौखट तुम जलना

सुब्दर कविता
आपको और आपके परिवार को दीपावली की शुभ्कामाये

http://rago.pankajit.com/
शरद कोकास ने कहा…
आपको भी शुभकामनायें ।
M VERMA ने कहा…
बूढ़ी आँखों में तुम जलना
उलझी रातों में तुम जलना
जरूरत तो यही है इन दियो की
दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ
बूढ़ी आँखों में तुम जलना
उलझी रातों में तुम जलना
अवसाद मिटाना हर चहरे का
हर आँगन तुम खिलना
दिया तुम जलना

सुन्दर कविता, अच्छे भाव!

दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
Randhir Singh Suman ने कहा…
दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
arey! bhai ....pathak ji..... aap to hamare hi kshetra ke hain..... bahut achcha laga yeh jaankar..... aaj aapke blog se..... aaj pehli baar aaya hoon aapke blog pe ....bahut achcha laga..... ab to aata rahunga....
Akanksha Yadav ने कहा…
सुन्दर भाव /
सार्थक रचना.. बधाई!

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