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आवारगी

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  आवारगी; पर लिखने का मन है, आज, माफ़ करियेगा.मुझे 'आवारा' शब्द से इतनी ज्यादा नफ़रत रही है, कि मेरे पापाजी को जब मुझसे अधिकतम विरोध जताना होता है, तो वे इसी शब्द का प्रयोग करते हैं. और वे जानते हैं, कि मै तिलमिला पडूंगा..

मिथिलेश भैया के "बिस्मिल" अखबार के लिए मैंने अपना पहला लेख लिखा...

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"हर दौर के बिस्मिल को.." बिस्मिल...यानि क्रांतिदूत..हर दौर को जरूरत होती है बिस्मिल की, क्योकि हर दौर में तब्दीलियाँ अपनी जगह बनाने को आतुर होती हैं और पुराने खंडहर अपनी जगह पर कुंडली मार बैठे होते हैं.