वो जो एक झोंक में


(A Sudden Gust of Wind by :Serkan Ozkaya)


 
वो जो एक झोंक में हम चाहते हैं
दर्द हो जाये छूमंतर,
अपनी प्यारी सी जान किसी झोला छाप को
आजमाइश के लिए सौंपनी होती है।
 
वो जो एक झोंक में ख्वाहिश है हमारी कि
मिल जाये हमें खुशियां जहान की,
किसी सौदागर को देती है दावत कि
परोसें हम उसे अपनी लज़ीज़ नेमतें।
 
वो जो एक झोंक में छा जाने की है अपनी कोशिश
करवायेगी बेइज्जत समझौते कई
नजर उठायीं ना जायेगी, खाली
करेगी खुद को खोखला।
 
वो जो एक झोंक में बयान की आदत है
नोचेगी ज़मीर, जमींदोज होगा तखल्लुस
और होगा मुश्किल ढूंढ़ना नामोनिशां।
 
झोंक की ना दोस्ती अच्छी ना ठीक दुश्मनी
एक झोंक के प्यार पे भी क्या एतबार
बस इक अमल की झोंक बेहतर
जो हवा के झोंके की मानिंद
भर देती है तन मन को ताजे मायनों से।
 
सनद रहे,
वो जो एक झोंक में सब समझ लेने की बेताबी है ना,
तथ्य से तर्क सोख, घटिया निष्कर्षों को
उन्मादी नारों में तब्दील कर देती है।
 
#श्रीशउवाच

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