ताकि...
मैंने देखा ..'बुढ़ापे' को,
सड़क के एक किनारे दूकान सजाते हुए.
ताकि..
रात को पोते को दबकाकर कहानी सुनाने का 'मुनाफा' बटोर सके.
एक 'बुढ़ापा' ठेला खींच रहा था..
ताकि..
अंतिम तीन रोटियां परोसती बहू को थाली सरकाना भार ना लगे.
सड़क के एक किनारे दूकान सजाते हुए.
ताकि..
रात को पोते को दबकाकर कहानी सुनाने का 'मुनाफा' बटोर सके.
एक 'बुढ़ापा' ठेला खींच रहा था..
ताकि..
अंतिम तीन रोटियां परोसती बहू को थाली सरकाना भार ना लगे.
मैंने समझा;
वो 'बुढ़ापा' दुआ बेचकर कांपते हाथों से सिक्के बटोर रहा था ..;
क्यों...? ताकि..
जलते फेफड़ों के एकदम से रुक जाने पर,
बेटा; कफ़न की कंजूसी ना करे.......!
#श्रीश पाठक प्रखर
टिप्पणियाँ
bahut hi shaandar rachna ....!!